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जौनपुर :निरंकार को हर कार्य में सम्मिलित कर आध्यात्मिक जागृति और सच्ची खुशी का विस्तार संभव है–माता सुदीक्षा

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डॉ.इम्तियाज अहमद सिद्दीक़ी सह-सम्पादक
जौनपुर, लखनऊ(उत्तर प्रदेश)
रियाजुल हक ज़िला क्राइम रिपोर्टर
जौनपुर :निरंकार को हर कार्य में सम्मिलित कर आध्यात्मिक जागृति और सच्ची खुशी का विस्तार संभव है–माता सुदीक्षा

जौनपुर (उत्तरशक्ति)।यह प्रेरणादायक वचन निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा द्वारा नववर्ष के शुभ अवसर पर दिल्ली में आयोजित विशेष सत्संग समारोह में मानवता के नाम संदेश में दिया गया है। सतगुरु सुदीक्षा के संदेशों को बताते हुए स्थानीय मीडिया सहायक उदय नारायण जायसवाल ने बताया की नववर्ष केवल 2024 से 2025 का नम्बर परिवर्तन है। वास्तविकता में यह केवल इंसानी मस्तिष्क की बनाई गई अवधारणा है। निरंकार ने समय और सृष्टि को बनाया है, जिसमें अलग-अलग ग्रहों पर समय की अलग अवधारणा होती है इसलिए, नये वर्ष का अर्थ है, हर क्षण को सार्थक बनाना।सच्ची खुशी और आनंद केवल निरंकार में समाहित है। इस नये वर्ष में हमें अपने जीवन को ऐसा बनाना है कि हम हर व्यक्ति तक इस सच्चाई को पहुंचा सकें। हमें अपने जीवन को इस तरह ढालना है कि हर पल, हर कार्य में निरंकार की महत्ता को समझ सकें। सेवा, सुमिरण और संगत का वास्तविक अर्थ तभी प्रकट होगा, जब हम इसे दिल से अपनाएंगे। केवल मित्रता या सामाजिक दबाव के कारण अपनी आध्यात्मिकता में परिवर्तन नहीं करना चाहिए। सच्चे मन और जागरूकता से ही हम अपने जीवन को निरंकार से जोड़ पाएंगे।
अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए, हर कार्य में निरंकार को समाहित करना जरूरी है। यही वह मार्ग है, जो हमारे जीवन में आध्यात्मिक जागरूकता और संतोष का विस्तार करता है। इस नये वर्ष में हमें अपने पुराने अनुभवों से सीख लेकर,अपने भीतर की कमियों को सुधारते हुए, अच्छाइयों को अपनाना चाहिए। मानवीय गुणों से युक्त जीवन ही सच्चा जीवन है।

सतगुरु माता ने सभी संतों को सम्बोधित करते हुए फरमाया कि आज के समय में समाज और मानव जीवन से परमात्मा की उड़ीक (जिज्ञासा) धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है। लोग परमात्मा के अस्तित्व पर संदेह कर रहे हैं और सत्य की राह देखने के बजाय उसे नकारने में लगे हैं। यह स्थिति केवल इसलिए है क्योंकि कई लोग परमात्मा को पाने का दावा करते हैं, लेकिन सच्चे प्रयास नहीं करते। सतगुरु के ज्ञान से हमें जो सत्य प्राप्त हुआ है, वह केवल कहने-सुनने तक सीमित न रहे। यह हमारे जीवन में महसूस हो और ऐसा महके कि समाज के लिए वरदान बन सके। हमारा जीवन परमात्मा की ओर प्रेरित करने वाला बने, न कि दिखावे तक सीमित रहे।

सेवा, सुमिरण और संगत के बिना भक्ति अधूरी है। सच्चा जीवन वही है जिसमें परमात्मा का प्रेम और भक्ति का वास हो। हमें प्रेम, समर्पण और जिम्मेदारी के साथ मानव परिवार को साथ लेकर चलना है। सत्संग के इस अमूल्य पहलू को सजाते हुए अपने जीवन को ऐसा साधन बनाएं कि हम प्रभु के निकट जा सके और दूसरों के लिए प्रेरणा स्वरूप बने।इस नव वर्ष के अवसर पर सतगुरु ने अंत में सभी श्रद्धालुओं के लिए सुख, समृद्धि और आनंदमय जीवन की शुभकामनाएं दी है।

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