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इस धरती पर पाप अगर ऐसे ही बढ़ता जाएगा , कैसे कोई बाप फिर डॉक्टर बेटी को बनाएगा !

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इंसाफ करो(गीत)

इस धरती पर पाप अगर ऐसे ही बढ़ता जाएगा ,
कैसे कोई बाप फिर डॉक्टर बेटी को बनाएगा !
इंसाफ करो, इंसाफ करो

सपने कितने संजोए थे, रातें कितनी न सोए थे
खून का कतरा क़तरा दे माला में फूल पिरोये थे ।
सोचा था होगा जीवन में बेटी के उजियारा ।
कैसे किसी ने कर डाला इक पल में ही अंधियारा ।


नई उड़ानों के सपनों को कौन उड़ाना चाहेगा ।
कैसे कोई बाप फिर डॉक्टर बेटी को बनाएगा !
इंसाफ करो, इंसाफ करो

भूले नहीं निर्भया को अब फिर ये नया संताप हुआ
जिसका आँगन था खनकना, घोर वहाँ विलाप हुआ ।


चैन से सोये मां बाबा की नींदें पल में उजड़ गईं ।
एक आँख से लहू जो निकला शर्म से धरती डूब गई ।
अब अपनी बगिया में कोई कलियाँ नहीं खिलाएगा ।
कैसे कोई बाप फिर डॉक्टर बेटी को बनाएगा !
इंसाफ करो, इंसाफ करो


सोचूँ तो रूह काँप उठे, और दिल दहल ये जाता है ।
कैसे कोई फूलों पर हैवानियत बरपाता है ।
पूछो उस बेटी से कोई जिसने दर्द को झेला है ।
कैसे कोई इस पीड़ा को शब्दों में कह पाता है ।
जीवित रहे ये पापी तो फिर सर्वनाश हो जाएगा ।
कैसे कोई बाप फिर डॉक्टर बेटी को बनाएगा!
इंसाफ करो, इंसाफ करो


फूल-परी मत कहो सुता को काली का अवतार कहो ।
लड़ सके सारी दुनिया से हाथों में तलवार दो ।
शिक्षा और ताकत से बेटी को बलवान बनाना है।
बेटों को कुछ देना तो पहले अच्छे संस्कार दो ।
इन हालातों में बेटी को फिर दफनाया जाएगा ।
कैसे कोई बाप फिर डॉक्टर बेटी को बनाएगा!
इंसाफ करो, इंसाफ करो

: रिम्पी अंकुर लीखा, हांसी,
हिसार ।

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