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जौनपुर;चर्चित पेसारा गौशाला प्रकरण में कलम की हुई जीत केराकत पुलिस को फटकार लगाते हुए,उच्च न्यायालय ने रद्द की एफआईआर

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डॉ.इम्तियाज अहमद सिद्दीकी सह-संपादक,उत्तरशक्ति हिन्दी दैनिक,जौनपुर ( उत्तर प्रदेश )
रियाजुल हक़ ब्यूरो
जौनपुर;चर्चित पेसारा गौशाला प्रकरण में कलम की हुई जीत
केराकत पुलिस को फटकार लगाते हुए,उच्च न्यायालय ने रद्द की एफआईआर
गौशाला की अव्यवस्था पर पत्रकारों ने अपनी लेखनी से उठाएं थे कई सवाल
वसूली समेत पांच गंभीर धाराओं में दर्ज हुआ था अभियोग

केराकत, जौनपुर(उत्तरशक्ति)/यूपी पुलिस द्वारा मनमाने तरीकों से लिखी गई एफआईआर पर विगत दिनों सुप्रीम कोर्ट भी नाराजगी जाहिर करते हुए,टिप्पणी की थी। लेकिन पुलिस की कार्यशैली सुधरने का नाम ही नहीं ले रही हैं। बता दे कि दो साल पूर्व गौशाला की खबर प्रकाशित करने से खिन्न हुए, ग्राम प्रधान पेसारा द्वारा अधिकारियों व केराकत पुलिस को चढ़ावा देते हुए। 24 मार्च 2023 को गौशाला की अव्यवस्था पर सवाल उठाने वाले पंकज,आदर्श,अरविंद,विनोद नाम के चारों पत्रकारों के खिलाफ वसूली सहित अन्य गंभीर धाराओं में मुकदमा पंजीकृत करते हुए,केराकत पुलिस उत्पीड़न करने लगी। चारों पत्रकारों ने स्थानीय पुलिस की ज्यादती पर उच्च अधिकारियों के यहां गुहार की। लेकिन उच्च अधिकारी केराकत पुलिस की कार्यशैली पर आंख मूंदे हुए थे। उच्च अधिकारी पत्रकारों की शिकायत पर “हम ना मानब” वाली हठधर्मिता” पाले हुए थे। अधिकारियों के इस रवैए को देखकर पत्रकारों ने उच्च न्यायालय का रुख करते हुए,एक याचिका संख्या 2569/2024 दायर की उच्च न्यायालय ने पत्रकारों को राहत देते हुए,गिरफ्तारी पर रोक लगा दी और पुलिस से आख्या मांग ली। पत्रकारों के दो साल के अनवरत प्रयास से उच्च न्यायालय ने दोनों पक्षों को सुनते हुए,पाया कि केराकत पुलिस द्वारा दर्ज किया गया प्रथम सूचना रिपोर्ट का कारण महज प्रताड़ना व द्वेष के कारण किया गया है, माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने पत्रकारों के खिलाफ दायर मुकदमें को खारिज करते हुए, मुकदमा रद्द कर दिया।

उच्च न्यायालय के आदेश पर एससीएसटी कोर्ट ने संपूर्ण कार्रवाई रद्द की

उच्च न्यायालय ने 17 सितंबर 2024 को फैसला सुनाया। जिसमें केराकत थाना पर दर्ज की गई प्रथम सूचना रिपोर्ट मनमाने तरीके से दर्ज करने पर स्थानीय पुलिस को लताड़ते हुए, सम्पूर्ण प्रथम सूचना रिपोर्ट को खत्म करने का निर्देश दिया है, उच्च न्यायालय के अंतिम निर्णय के बाद विशेष न्यायाधीश अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार कोर्ट ने उक्त मामले में संपूर्ण दांडिक कार्रवाई को निरस्त कर दिया।

मुकदमे से क्षुब्द पत्रकारों ने किया था डीएम के प्रेस वार्ता का बहिष्कार

पत्रकार के ऊपर हो रहे फर्जी मुकदमे को लेकर जिला मुख्यालय के पत्रकारों ने एक बैठक कर डीएम के प्रेस वार्ता के बहिष्कार का निर्णय लिया।पत्रकारों के वहिष्कार के निर्णय से जिला प्रशासन में हड़कंप मच गया।तत्कालीन जिलाधिकारी अनुज कुमार झा के द्वारा पत्रकारों के साथ परिचयात्मक बैठक बुलाई गई जिसमें पत्रकारों के ऊपर हो रहे उत्पीड़न को लेकर चर्चा की गई।बाबजूद इसके भी मुकदमा खत्म करने की बजाय माननीय न्यायलय में चार्जसीट भेज दी गई।

भारतीय प्रेस परिषद मामले को लिया था संज्ञान

भारतीय प्रेस परिषद ने मामले को लेकर की थी तल्ख टिप्पणी

मामला दर्ज करने के संबंध में भारतीय प्रेस परिषद ने स्वत: संज्ञान लेते हुए जो पत्र मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश सरकार, गृह सचिव पुलिस विभाग एवं जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक जौनपुर सहित पुलिस महानिदेशक लखनऊ को प्रेषित किया है उसमें कड़े शब्दों में तल्ख टिप्पणी करते हुए स्पष्ट रूप से कहा था कि “ऐसा प्रतीत हो रहा है कि पत्रकारों पर दबाव बनाने के उद्देश्य से ही ग्राम प्रधान द्वारा अधिकारियों के इशारे पर मुकदमा दर्ज कराया गया है।”

न्यायालय पालिका व बाबा साहब के संविधान पर था पूर्ण भरोसा:विनोद कुमार

क्षेत्र के सेनापुर निवासी पत्रकार विनोद कुमार बताते है कि 24 मार्च 2023 दिन शुक्रवार भूलता नहीं,केराकत थाने पर इसी दिन फर्जी अभियोग दर्ज किया गया। पेसारा गांव में स्थित गौ-शाला में गायों को जिन्हें महज अस्थाई तरीके से रोककर के बारी-बारी से मरने के लिए छोड़ दिया गया था। दुर्दशा पर खबर प्रकाशित करना भारी पड़ गया।तत्कालीन उपजिलाधिकारी नेहा मिश्रा ने प्रकाशित खबर को पढ़ते ही तानाशाह की मुद्रा में आ गई,खौफनाक तरीके से जघन्य से जघन्य धाराओं में अभियोग पंजीकृत कर प्रताड़ित करने की साजिश रचते हुए,ग्राम प्रधान पेसारा चंदा देवी से अनर्गल आरोपों की कहानी बनाकर केराकत थाने में अभियोग दर्ज कर लिया गया।मैं दलित था। उसके बावजूद कानून के रखवालों ने धज्जी उड़ाते हुए,नौकर शाहों ने प्रताड़ना का इतना मजबूत इरादा पाला था कि मुझे दूसरी जाति का दिखाते हुए,दलित उत्पीड़न,वसूली समेत पांच गंभीर धाराओं में मामला दर्ज कर लिया गया। आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण पुलिसिया उत्पीड़न का खौफ- मन में समा गया था। लेकिन न्यायालय व बाबा साहब के संविधान पर पूर्ण भरोसा था। संविधान का पालन व कर्तव्य के प्रति कसम खाने वाले बेलगाम नौकरशाहों के इस दुर्दांत कृत्य को देखकर मन व्यथित था। खुद को मजबूत करते हुए उच्च न्यायालय इलाहाबाद में याचिका दाखिल की। न्यायालय ने परीक्षण में पाया कि केराकत थाने में अभियोग फर्जी हैं,लिहाजा मामला रद्द करने का आदेश दे दिया। अब मैं न्यायालय में मानहानि करते हुए,एससीएसटी आयोग,भारतीय प्रेस परिषद में अधिकारियों की करतूतों को बेनकाब करते हुए,न्याय की मांग करूंगा।ताकि और किसी पत्रकार को ऐसी पीड़ा न सहनी पड़े।

 

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