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पानी के अंदर अलम के साथ नौहा मातम कर नहरे फरात का मंजर दर्शाया गया, आंखें हुई अश्क बार

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पानी के अंदर अलम के साथ नौहा मातम कर नहरे फरात का मंजर दर्शाया गया, आंखें हुई अश्क बार

 

जौनपुर(उत्तरशक्ति)शहर के मुफ्ती मोहल्ला स्थित अली घाट पर चेहलुम के सिलसिले से तुर्बत जुलजना अलम का जुलूस निकाला गया। जायरीनों ने जियारत करने के साथ मिष्ठानो पर नजर दिलवा कर मन्नत मांगी और मुराद पूरी होने पर मन्नत उतारी। तथा गोमती नदी किनारे पानी के उपर डाइज बनाकर जियारत करने गए श्रद्धालुओ मुख्य रूप से बच्चों को बार-बार दरिया में बढ़े पानी के चलते किनारे बनाई गई बैरिकेडिंग के अंदर ही रहने के लिए बार-बार एनाउंस किया जा रहा था। उसी डाइज से पशे मंजर तकरीर किया गया। पहली तकरीर मौलाना हसन अकबर, दूसरी डॉक्टर सैयद कमर अब्बास ने की 20 सफर की शब खोखरी मस्जिद में मजलिस हुई सोजखवानी अमन जौनपुरी, और शहरयार जौनपुरी, हसरत जौनपुरी ने पेशखवानी के काम को अंजाम दिया। मर्सिया मोहम्मद फैसल अब्बास ने पढ़ा। मजलिस को संबोधित जनाब सै0 डॉक्टर कमर अब्बास ने किया। तत्पश्चात अंजुमन सज्जादिया ने नौहा मातम किया और और ताजिया इमाम चौक अली घाट पर रखा गया। जिसे आज के चेहलुम के सिलसिले के कार्यक्रम के समाप्ति पर सुपुर्दे ख़ाक किया गया। 19 सफर के कार्यक्रम का संचालन हैदर अली जॉन ने तथा 20 सफर के कार्यक्रम का संचालन असलम नकवी व शम्सी आजाद ने किया।
पानी के अंदर अलम लेकर नौहा मातम करने का मंजर नहरे फरात का दर्शाया गया।जिसको देखकर श्रद्धालुओं की आंखे अश्क बार हो गई। और प्यासे कर्बला के शहीदों को पुरसा दिया गया। इससे पूर्व चेहलुम की मजलिस को जनाब मौलाना महफूज उल हसन खान साहब ने संबोधित किया। प्रशासन काफी महत्वपूर्ण तरीके का इंतजाम किए हुए था। पानी में चल रही स्टीमर पर सवार हल्का पुलिस चौकी पुरानी बाजार संजय ओझा साथी जवानों के साथ लेकर जुलूस वाले स्थान के इर्द गिर्द रहकर खासकर जुलूस में गए बच्चों पर निगाह रखे हुए थे कि वह पानी की तरफ ना आए।

बता दें शिराज ए हिंद जौनपुर अपनी विभिन्न जिन ख़ुसूसियात (पहचान)के लिए पूरी दुनिया में जाना पहचाना जाता है उन्हीं मे से एक यहां की अज़ादारी भी है। अली घाट, मुफ्ती मोहल्ला में मनाए जाने वाले चेहलुम के सिलसिले की तारीख़ पर प्रकाश डालना अति आवश्यक है आने वाली नसलो के लिए क्योंकि वह यह जान सके की यहां पर मजलिस मातम जुलूस का सिलसिला किसके द्वारा विभिन्न प्रकार की दुश्वारियां के साथ कड़ी मेहनत और लगन के साथ प्रारंभ किया गया है। शहर के मुफ्ती मोहल्ला निवासी अंजुमन सज्जादिया के साहबे बयाज़ स्वर्गीय जनाब एख़लाक़ हुसैन और उनके शिष्य हक़ीक़ी बड़े भाई जनाब इब्ने हसन अलतमश और उनके एक मित्र स्वर्गीय सिराज हुसैन सिरोज ने सन 1988 में आस-पास के सम्मानित संभ्रांत व्यक्तियों के अलावा मोहल्ले के कम लोगों को साथ में लेकर की थी। अलीघाट चेहलुम के सिलसिले की पहली मजलिस जवाब शायान साहब ने पढ़ी थी। और दो वर्ष बाद वो ईरान चले गए । उनके ईरान चले जाने के बाद मजलिस को जनाब मौलवी मोहम्मद मेंहदी (छेदी) साहब ने ख़ेताब फ़रमाया और वह भी 2 या 3 साल मजलिस पढ़ने के बाद आइन्दा चेहलुम के समय मसरूफियत के चलते बाहर चले गये। इस बात को लेकर अलतमश साहब और सिरोज साहब बड़े फ़िक्रमन्द थे कि आखिर अब किससे मजलिस पढ़वाई जाए। चेहलुम का दिन भी क़रीब आने वाला है इसी उधेड़बुन में दोनों लोग लगे रहे। हालांकि की इन लोगों ने मोहल्ले के ही उस वक़्त के मशहूर ज़ाकिर से इस सिलसिले में बात की तो उन्होंने माज़रत (इनकार)कर दिया। आखिर थक हार कर जेहनी तौर पर परेशांन हाल हो के आखिर किस्से कहा जाए जो मजलिस पढ़ने को तैयार हो जाए। बहुत कम दिन बचे हैं चेहलुम को। यही सब सोचते हुए दोनों लोग मुफ़्ती हाउस रास्ते से बड़ी ही मायूस हालत से गुज़र रहे थे। तभी रात के समय होने के कारण खाना खाने के बाद मौलवी हबीब हैदर साहब मरहूम टहल रहे थे। दोनों लोगों की मुलाक़ात उनसे हो गई तो उन्होंने इतनी रात में रास्ते से गुजरने का सबब पूछा। मायूसी के साथ दोनों लोगों ने हालात बताते हुए पूरे किससे को इस तरह से उन्हें सुनाया की। वह मजलिस को पढ़ने के लिए तुरंत बगैर कुछ कहे तैयार हो गये और तब से लेकर अपने इन्तेक़ाल तक मजलिस की ज़ाकिरी मरहूम मौलवी हबीब हैदर साहब ने की । एख़लाक़ हुसैन साहब और सिराज हुसैन का इंतेक़ाल हो चुका है जब कि इब्ने हसन अलतमश माशाअल्लाह ब हयात हैं और रोज़गार के सिलसिले में सऊदी अरबिया में मुक़ीम हैं । यह जानकारी हैदर अली जान ने दी है।

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